"अगले साल छह राज्यों में चुनाव है। गुजरात चुनाव के बाद से आम आदमी पार्टी ने अपनी ओर सबका ध्यान खींचा है। सियासी गलियारों में सवाल उठने लगा है,आप किसे करेगी हाॅफ। क्या आप की वजह से चुनावी मौसम बदलेगा? किस पार्टी को अपनी सीट बेल्ट बांध लेनी चाहिए..?"
नई दिल्ली। रमेश कुमार ‘रिपु’ । गुजरात चुनाव से सियासियों को यह एहसास हो गया,कि आम आदमी पार्टी अब क्या चीज है? गुजरात में असंभव को भी संभव कर दिया। दो राज्यों में आप की सरकार। अब दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी का मेयर,यानी एमसीडी में कब्जा। अगले साल मेघालय,छत्तीसगढ़, कर्नाटक,राजस्थान,मध्यप्रदेश और राजस्थान में चुनाव है। गुजरात चुनाव के बाद से आम आदमी पार्टी ने अपनी ओर सबका ध्यान खींचा है। सियासी गलियारों में सवाल उठने लगा है,आप किसे करेगी हाॅफ। क्या आप की वजह से चुनावी मौसम बदलेगा? किस पार्टी को अपनी सीट बेल्ट बांध लेनी चाहिए?
अगले साल होने वाले छह राज्यों के चुनाव में सबका ध्यान मध्यप्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ में है। मध्यप्रदेश में बीजेपी एंटीइन्कमबेसी के संक्रमण से गुजर रही है। जबकि है सत्ता में। लेकिन संशय में है। किसी को कुछ सूझ नहीं रहा है। अंदर ही अंदर खामोशी है। शांति है,पर सब अशांत हैं। कांग्रेस के खेमे में तोड़ फोड़ कर उसने सरकार बना ली,मगर चुनाव में जनता उसे सत्ता सौपेंगी कि नहीं,बीजेपी के नेता दुविधा में हैं। गुजरात में पूरा मंत्रीमंडल बदल दिया गया था। मुख्यमंत्री भी। साथ ही 103 नए चेहरों को टिकट दिया गया। क्या यहाँ भी आप की वजह से ऐसा हो सकता है,या फिर ऐसा करना पड़ेगा।
आंतरिक सर्वे और इंटेलीजेंस की रिपोर्ट ने बीजेपी हाईकमान का बी.पी.बढ़ा दिया है। उसे भी लगता है,एंटी इनकम्बेंसी की वजह से बीजेपी को बड़ा नुकसान होने का अंदेशा है। मध्यप्रदेश में भी शिवराज सरकार की बड़ी सर्जरी करके ही एंटी इन्कमबेंसी कम की जा सकती है। करीब 67 विधायकों के टिकट काटने की योजना है। ताकि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के लिए भष्मासुर साबित हो सके। वहीं बीजेपी के सामने अगामी चुनाव में कई सियासी कंटक है ।
सिंधिया गुट के बाद आज भी कांग्रेस में 95 विधायक हैं। बीजेपी को ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट को भी टिकट देना होगा। जाहिर है टिकट वितरण में संतुलन बनाना बीजेपी के लिए मुश्किल होगा। संतुलन तभी बनेगा,जब सीनियर विधायकों की टिकट कटेगी। बीजेपी और कांग्रेस से नाराज लोगों को टिकट देने आप कांउटर खोल कर बैठ जाएगी। ऐसे में सबसे ज्यादा बवाल बीजेपी में मचेगा। और आम आदमी पार्टी की वजह से नुकसान बीजेपी को होगा। ऐसा हुआ तो चुनाव का मौसम बदल जाएगा। सीट बेल्ट बांधने की बारी बीजेपी की है। आप से कांग्रेस का संगठन ज्यादा मजबूत होने से उसे खतरे का अंदेशा कम है।
बीजेपी नेता मानते हैं कि,गुजरात जैसी मध्यप्रदेश की सियासी स्थिति नहीं है। यहांँ का वोटर भी वैसा नहीं है। लेकिन बरसों से बीजेपी में जो विधायक हैं,वर्तमान में मंत्री भी हैं। चुनाव प्रचार में या फिर लोकसभा चुनाव में उन्हें लगाया जा सकता है। देखा जाए तो बीजेपी में आठ बार से विधायक हैं गोपाल भार्गव। सात बार से विधायक हैं विजय शाह,गौरीशंकर बिसेन और कर्ण सिंह वहीं छह बार से विधायकों में जगदीश देवड़ा,नरोत्तम मिश्रा,बिसाहूलाल सिंह,पारस जैन,रामपाल सिंह और गोपीलाल जाटव हैं। पांच बार से विधायक कमल पटेल,प्रेम सिंह पटेल,तुलसी सिलावट,मीना सिंह,जय सिंह मरावी,सीतासरण शर्मा,नागेन्द्र सिंह। चौदह ऐसे विधायक हैं,जो चार बार से विधायक हैं। 28 विधायक तीन बार से है। दो बार के 36 विधायक हैं और पहली बार विधान सभा पहुंचने वाले 30 विधायक हैं। जाहिर सी बात है उन मंत्रियों और विधायकों की टिकट कट सकती है जिन्हें नगरीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में बीजेपी के जिताने का दायित्व दिया गया था,लेकिन सफल नहीं हो सके।
वैसे आप के पास कोई सियासी सिद्धांत नहीं। सिवाय रेवड़ी नीति के। यह रेवड़ी नीति का जादू किन राज्यों की जनता पर चलेगा,खुद आप भी नहीं जानती। लेकिन गुजरात चुनाव में उसकी वजह से कांग्रेस 77 सीट से फिसल कर 17 सीट पर आ गई। क्या मध्यप्रदेश में भी ऐसा हो सकता है? क्या वाकई कांग्रेस का विकल्प आप बन सकती है या फिर उसे बीजेपी का भी विकल्प बतौर जनता देखती है? शहरी अबादी का मध्यम वर्ग का तबका आप की रेवड़ी नीति से प्रभावित है। यह वोटर कांग्रेस और बीजेपी दोनों को वोट करता आया है। वो बंटेगा। आप उसी वोटर पर फोकस करेगी,जिन्हें कांग्रेस और बीजेपी करती है। उसकी नजर ओबीसी,एस.सी.और एस.टी.. वोटरों पर है ।
सन् 2018 के विधान सभा चुनाव में आप को मात्र 2.54 लाख वोट मिले थे। जबकि नगरीय निकाय और पंचायती चुनाव में उसे सात फीसदी वोट मिले। यदि वो विधान सभा चुनाव में पन्द्रह फीसदी वोट झटक लेती है तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों का नुकसान होगा। प्रदेश में आम आदमी पार्टी का सिंगरौली में मेयर है। जबकि इसे शिवराज सिंह चैहान सिंगापुर बनाने का वायदा किए थे। यहाँ आप के पांँच पार्षद हैं। यानी सिंगरौली जिले की विधान सभा में आप का दखल रहेगा। आप ने नगरीय निकाय चुनाव में पार्षद के लिए 1500 उम्मीदवारों को टिकट दिया था। जिसमें 51 प्रत्याशी चुनाव जीते। आप के 86 पार्षद प्रत्याशी दूसरे नम्बर पर थे। मेयर चुनाव में ग्वालियर से रूचि गुप्ता ने 45 हजार से अधिक वोट पाई थीं। वहीं सिंगरौली, उमरिया, कटनी, छतरपुर, टीकमगढ़, राजगढ़, शाजापुर,रतलाम,ग्वालियर के डबरा,श्योपुर,छिंदवाड़ा में पार्टी के पार्षद चुनकर आए हैं। तो क्या यह मान लिया जाए, कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस जिन 26 सीटों पर सात हजार से भी कम वोटों से जीती है, गुजरात जैसी स्थिति बनने पर कांग्रेस को पचास से अधिक सीटों का नुकसान होगा। दिल्ली से लगे ग्वालियर चंबल में दस विधान सभा आते हैं। आदिवासी रिजर्व सीटों पर आप का जयस(जय आदिवासी युवा शक्ति) से तालमेल है। ऐसे में कांग्रेस की दस सीटों का परिणाम प्रभावित हो सकता है। 2018 के चुनाव में आदिवासी की 47 सीट में 30 सीटें बीजेपी जीती थी। इस बार यह सीट घट सकती है। विधान सभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों की वजह से उसका वोट प्रतिशत पन्द्रह फीसदी हुआ तो चुनाव का मौसम बदल जाएगा।
छत्तीसगढ़ में आप एक बूथ पर दस युथ की रणनीत पर काम कर रही है। आप के कार्यकर्ता घर घर जा कर जानकारियांँ एकत्र कर रहे हैं। 2018 के चुनाव में कांग्रेस सात सीटों पर तीसरे नम्बर पर थी। 19 सीटों पर उसका मंथन चल रहा है। कांग्रेस के 71 विधायक हैं। आप उनके लिए भी दरवाजे खोल रखी है जो बीजेपी,कांग्रेस और जोगी कांग्रेस से टिकट नहीं पाएंगे। छत्तीसगढ़ में आप के लिए खोने के लिए कुछ नहीं है। लेकिन आप से सियासी नुकसान अन्य दलों को होगा,क्यों कि आप भी इस वक्त राष्ट्रीय पार्टी है।