September 12, 2024

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जहर बेच कमाया 2.36 करोड़ मुनाफा : फिर भी गरीबी से बदहाल

80 फीसदी एंटी वेनम सप्लाई




चेन्नई | न्यूज़ डेस्क | तमिलनाडु की एक जनजाति इरुला देश में सांपों के काटने का इलाज करने के लिए 80 स्नेक एंटी वेनम की सप्लाई करती है | जिसके कारण देश में हजारों लोगों की जान बचाई जा रही है | मगर यह जनजाति गरीबी का इलाज खोजने के लिए लगातार जूझ रही है | पिछले 3 साल में 1800 ग्राम सांपों का जहर निकालकर और बेचकर इरुला जनजातियों की सहकारी संस्था ने 2.36 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया है | इसके कारण पूरी दुनिया की निगाहें इस संस्था की ओर गई हैं | तमाम सफलताओं के बावजूद चेन्नई के बाहरी इलाके में मौजूद इरुला आदिवासियों की यह सहकारी समिति अनिश्चित भविष्य का सामना कर रही है | 

अपनी सफलताओं की तमाम कहानी के बावजूद इरुला आदिवासी जहर निकालने की एक पुरानी तरकीब का उपयोग करते हैं | इस बीच उनके विशेष के जहर की मांग बढ़ रही है | साथ ही उन्नत एंटी-स्नेक वेनम सीरम के प्रोडक्शन में पूरी दुनिया में वैज्ञानिक प्रगति हो रही है | तमिलनाडु का इरुला समुदाय, सांपों और जहरीले जानवरों को पकड़ने में अपने अनूठे कौशल के लिए मशहूर है | भारत में इरुला समुदाय सांपों के जहर को बेअसर करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले लगभग 80 फीसदी विष की सप्लाई करके पब्लिक हेल्थ में बड़ी भूमिका निभाता है | 

पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल

उनकी पारंपरिक प्रथा, इरुला स्नेक कैचर्स इंडस्ट्रियल कोऑपरेटिव सोसाइटी के जरिये 46 साल से चली आ रही है | 2021 की तमिल फिल्म जय भीम के बाद उनके तरीके को अधिक बड़े पैमाने पर जाने जाने लगा | जिसमें उनके सांप पकड़ने के कौशल और अधिकारियों और पुलिस से उन्हें मिलने वाली चुनौतियों को दिखाया गया था | हाल ही में इरुला समुदाय के दो लोगों को पद्म श्री पुरस्कार से उनके कौशल की मान्यता मिली | इसके बावजूद, इरुला जनजाति को सांप के जहर निकालने के अपने पारंपरिक तरीकों को बनाए रखने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है | 

सांपों का जहर निकालने में ऑटोमेटिक तरीके बढ़े

सांपों के जहर को बाहर निकालने के तौर-तरीकों में ऑटोमेटिक तरीकों को बढ़ने और क्रूरता-मुक्त टेस्ट की ओर बदलाव ने भी इरुला समाज को बदलावों के लिए तैयार नहीं किया है | इसके अलावा इरुला समुदाय को वन विभाग से दुश्मनी का सामना करना पड़ रहा है, जो सांपों को वन्यजीव मानता है | देश में सांप के काटने से होने वाली मौतों की संख्या देश में औसतन सालाना 50,000 से ज्यादा है | लगभग इरुला जनजाति के 350 लोग कांचीपुरम, चेंगलपट्टू और तिरुवल्लूर जिलों में और उसके आसपास के खेतों से ‘बड़े चार’ सांपों-रसेल वाइपर, सॉ-स्केल्ड वाइपर, कॉमन क्रेट और स्पेक्टेक्लेड कोबरा को पकड़ते हैं | इरुला हर सांप से तीन से चार बार जहर निकालते हैं और 21 दिनों के बाद उसे वापस जंगल में छोड़ देते हैं | 





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सोनम कौर भाटिया

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