भोपाल। रमेश कुमार 'रिपु'। संभागीय मुख्यालय रीवा जिले की सेमरिया विधान सभा से कांग्रेस प्रत्याशी अभय मिश्रा भाजपा के के. पी त्रिपाठी से कांटे की टक्कर में 637 वोट से जीते। इस जीत से अभय का भय खत्म हो गया। मगर कब तक, स्वयं अभय भी नहीं जानते। वहीं सेमरिया विधान सभा भय,आतंक और भ्रष्टाचार से कितना मुक्त हुआ,यह आने वाला समय बताएगा। बदले की राजनीति यहां आकार लेती है या नही,यह सेमरिया विधान सभा भी नहीं जानता। लेकिन अभय मिश्रा की बेचैनी कम हो जाएगी, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। उन्होंने जनता से ढेरों वायदे किए हैं। कितने वायदे कारगर होते हैं और लडखड़ाते हैं पांच साल में, यह विपक्ष भी देखेगा। अभय की सियासी राह कैसी रहेगी यह विंध्य में मंत्री कौन बनता है उस पर निर्भर करेगा। रीति पाठक, राजेन्द्र शुक्ला या कोई और।
फार्म हाऊस की कांग्रेस...
रीवा जिले में कांग्रेस से एक मात्र अभय मिश्रा जीते हैं। जबकि सेमरिया विधान सभा से अभय मिश्रा चुनाव नहीं जीत रहे हैं, ऐसा कमलनाथ का सर्वे बता रहा था। पता नहीं उन्होंने कैसा सर्वे कराया था। दरअसल संगठन मंत्री भानू प्रताप शर्मा नहीं चाहते थे, कि अभय मिश्रा को टिकट मिले। कांग्रेस पर्यवेक्षक मित्तल को सत्य नारायण शर्मा,लालमणि पांडेय,प्रदीप सोहगौरा सहित अन्य पांच लोगों का कहना था कि अभय के अलावा किसी को भी टिकट दें दे, उन्हें देंगे तो हम मिलकर हरा देंगे।
अभय का कांग्रेस के अंदर भारी विरोध था। अब उनके चुनाव जीत जाने के बाद क्या स्थिति रहेगी संगठन मंत्री ही नहीं, अभय भी नहीं जानते। कांग्रेस के अंदर सियासी पासे अपना घर बदलते रहते हैं। चूंकि अभय इकलौते कांग्रेस से विधायक हैं, यदि उनमें साथ लेकर चलने की सियासी चाह रहेगी तो अपना कद बढ़ा लेंगे। इस चुनाव में अमहिया कांग्रेस खत्म हो गयी। फार्म हाऊस की कांग्रेस आकार लेगी या नहीं यह तो कमलनाथ भी नहीं जानते।
क्यों जीती कांग्रेस..
इस चुनाव में सबसे बड़ा सवाल यह है कि कमलनाथ के तीन सर्वे के बाद अन्य सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों को टिकट दिया गया था, तो फिर हारने वाली सीट पर ही कांग्रेस क्यों जीती? जाहिर सी बात है कि शर्मा बंधुओं ने अमहिया कांग्रेस की तर्ज जिला कांग्रेस को गढ़ा। उसी का नतीजा है कि संवरने की बजाए, यहां कांग्रेस बिखरती रही। भाजपा सात सीट जीत गयी। गुरमीत सिंह मंगू ने कमलनाथ से कहकर सिद्धार्थ की टिकट त्योंथर से कटवा दी। उन्हें गुढ़ जाने को कहा गया। जबकि वो त्योंथर में मेहनत कर रहे थे। उनका भाजपा में जाना उनके हित में रहा।वो त्योंथर से विधायक बन गए,अब अमहिया भाजपा मय हो गयी। के.पी. त्रिपाठी अपने आचरण से मात खाये। उन्हें जो वोट मिले वो लाड़ली बहना की वजह से मिले। यानी इस विधान सभा में 70 हजार के करीब लाड़ली बहना हैं,उन्होंने शिवराज को देखकर वोट किया न कि के.पी को देखकर। के पी त्रिपाठी के पास पांच साल का वक्त रहेगा। वो अपनी सियासत का रंग सेमरिया की जनता के अनुकूल कितना बदल पाते है वह अभय के रहते, यह सबसे बड़ा सवाल है।
कौन बनेगा मंत्री...
राजेन्द्र शुक्ला अपने सियासी चेले को चुनाव नहीं जीता सके। खुद जीत गए हैं। यदि राजेन्द्र शुक्ला मंत्री बना दिये जाते हैं तो के.पी त्रिपाठी का सियासी चक्र सेमरिया में घूम सकता है। और अभय का भय कम नहीं होगा। वो विधायक होकर भी केपी से लड़ से पाएगें, इसकी संभावना कम है। उन्हें अपने विधान सभा की जनता और खुद के लिए, पूरे पांच साल लड़ना पड़ सकता है। यह भी हो सकता है कि वो खुद को बचाने में फंस कर रह जायें। वैसे भाजपा के पास उम्मीद से अधिक विधायक हैं इस बार। इतना ही नहीं, कई केन्द्रीय मंत्री और सांसद भी चुनाव जीत कर आए हैं। यदि शिवराज सिंह मुख्यमंत्री रहे तो राजेन्द्र शुक्ला के मंत्री बनने के आसार ज्यादा है।
नरेन्द्र सिंह तोमर,प्रहलाद पटेल,कैलाश विजय वर्गीय मुख्यमंत्री बनाए गये तो राजेन्द्र शुक्ला को लेकर संशय हो सकता है। भाजपा के लोग यह भी कह रहे हैं कि हर बार राजेन्द्र ही क्यों? और दूसरों का नम्बर क्या नहीं आएगा। यह तो स्वयं राजेन्द्र भी नहीं जानते कि उनका नम्बर इस बार भी मंत्री के लिए आएगा कि नहीं। रीती पाठक के मंत्री बनने की संभावना ज्यादा है। इसलिए कि वो मोदी की गुड लिस्ट में हैं।