November 26, 2023


चुनौती से लड़ो : पनौती से देश को बचाओ


नई दिल्ली । रमेश कुमार 'रिपु'। क्या चुनाव दो विचार धाराओं की लड़ाई है,या फिर हील हुज्जत करने का मौसम है। राष्ट्रीय मानस पटल पर नेताओं की भाषा का संस्कार पूरी तरह छा जाता है।जबकि सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि भाषण में सियासी पार्टियां हेट स्पीच से बचें। ऐसा लगता है,कि भारतीय चुनाव अब दिमाग के साथ, जुबान से भी लड़ा जाता है। मोदी सरनेम वाले चोर हैं,मामले में राहुल गांधी की लोकसभा से सदस्यता चली गयी थी। सजा भी हो गयी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दखल देने पर विपक्ष की सारी योजना पर पानी फिर गया। अब एक बार फिर राहुल गांधी को चुप कराने सत्ता पक्ष जुट गया है। राहुल गांधी को जेबकतरा और पनौती शब्द पर चुनाव आयोग ने नोटिस दे दिया है। सवाल यह उठता है कि चुनाव आयोग अपने संसदीय अधिकारों का इस्तेमाल अपने विवेक से करता है या फिर मोदी सरकार के कहने पर। क्यों कि नरेन्द्र सिंह तोमर के बेटे का चुनाव में पैसा बांटने और किसी से पैसे की डील करने का वीडियो वायरल होने के बाद भी चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस नहीं दिया।


बीजेपी के माथे पर पसीना..

राजस्थान में एक आम सभा में राहुल गांधी ने कहा कि पी फार पनौती और एम फार मोदी। यह शब्द सोशल मीडिया में इतना ट्रोल हुआ कि बीजेपी के माथे पर पसीना आ गया। गुजरात लाॅबी को यह लगने लगा,कि लोकसभा चुनाव के समय कहीं यह शब्द मोदी पर चस्पा न हो जाए। इसलिए कि सोशल मीडिया में चौबीस घंटे में पनौती शब्द एक करोड़ नब्बे लाख बार लिखा गया। वैसे पनौती मतलब मनहूस होता है। यह कोई असंसदीय शब्द नहीं है। गाली भी नहीं है। लोक शब्द है। जैसे लोग बोलचाल में कहते हैं,अरे वो ढक्कन। अरे सर्किट। देखा जाए तो हमारे लोक जीवन में कई सारे ऐसे शब्द हैं जो विलोप हो गए या फिर उनकी जगह नए शब्द आ गए।


पप्पू खूब ट्रोल हुआ...

पनौती शब्द पर चुनाव आयोग का संज्ञान लेना हैरान करता है। राहुल गांधी को नोटिस दे दी गयी है। माना जा रहा है कि राहुंल गांधी को चुप कराने एफआइआर भी दर्ज कराने की तैयारी चल रही है। खासकर बीजेपी शासित राज्यों में। देश में न जाने कितने बच्चों का नाम पप्पू होगा। लेकिन बीजेपी के आईटी सेल ने राहुल गांधी को पप्पू के रूप में इतना ट्रोल किया कि पप्पू कहो तो सीधे राहुल गांधी से लोग जोड़ लेते हैं। यह अलग बात है, कि उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा से अपनी एक अलग सियासी छवि बनाई।


नए शब्द चलन में..

चौकीदार चोर है। पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड। जर्सी काऊ।कांग्रेस की विधवा। मौत का सौदागर। टंच माल है। राजनीति में ऐसे शब्द विपक्ष की छवि को धूमिल करने के लिए गढ़े गए। कपड़ा फाड़ना। यह शब्द मालवा में अधिक बोला जाता है। इसका मतलब है कि कोई किसी पर गुस्सा होता है तो कपड़े फाड़ दिया, कहा जाता है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच सियासी बर्ताव पर कपड़ा फाड़ दिया शब्द सामने आया। मोदी ने बेटी पढ़ाओ,बेटी बचाओ की जगह, बेटी पढ़ाओ,बेटी पटाओ कहा। सोशल मीडिया में यह देखा जा सकता है। शहजादा मतलब राहुल गांधी। भक्त, अंध भक्त मतलब किसी ईश्वर का भक्त नहीं। बल्कि किसी पार्टी और नेता का भक्त। गोदी मीडिया यानी जो पत्रकार सत्ता के करीब है। नेता जी कहने से सुभाष चन्द्र बोस का भान होता था। लेकिन बाद में मुलायम सिंह यादव को कहा जाने लगा। अब कोई मायावती नहीं बोलता। बहन जी बोलते हैं। महात्मा गांधी की जगह बापू चलन में है।

दरअसल समय के साथ शब्द अपना अर्थ खोते गए। उनकी जगह नए शब्द आ गए। मसलन दलाल बोकर हो गया। घर वाली हाउस वाइफ हो गयी। प्यार, लव हो गया। विभीषण ,जयचंद या मीर जाफर बोलने का मतलब विश्वासघाती है। बीच में बोलने वाले को लघु झन्ना कहते हैं। छत्तीसगढ़ में मीठा बोलने वाले को मीठलबरा कहा जाता है। जाहिर सी बात है कि समाज में कई ऐसे शब्द हैं, जो चलन में हैं और कुछ चलन से बाहर हो गए। उनकी जगह नए शब्दों ने जगह बना ली। राजनीति में चुनाव के वक्त कई नए शब्द सुनने को मिलते हैं। पनौती निराशा जनक या फिर मनहूस के रूप में लिया जाता है। सवाल यह है कि क्या कोई पनौती हो सकता है? अहमदाबाद में प्रधान मंत्री क्रिकेट मैच देखने गए। संयोग से भारतीय क्रिकेट टीम हार गयी। वैसे भी उसे हारना था। लेकिन लोगों ने कहना शुरू कर दिया दस मैच भारतीय टीम जीतती रही,तब मोदी मैच देखने नहीं गए। हार की वजह वो हैं। उन्हें पनौती शब्द से नवाज दिया गया। डबल इंजन की सरकार। कहने का मतलब केन्द्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार हो तो विकास होगा। इंदिरा गांधी को आयरन लेडी और जय प्रकाश नारायण को लोक नायक कहा गया।

सवाल यह है कि पनौती और जेबकतरा शब्द की मिर्ची मोदी को या फिर बीजेपी को लगना था, चुनाव आयोग को क्यों लगा। मोदी ने जब कहा,ऐसा बटन दबाओ कि कांग्रेस को फांसी हो जाए। तब चुनाव आयोग कहां था। पनौती को लेकर राहुल गांधी के खिलाफ घेराबंदी होने लगी है। एक बात और चुनाव में देखने को मिली कि जो कभी नहीं देखी गयी। चुनाव के वक्त ही चालीस साल पुरानी फाइल प्रत्याशी की पलटी जाने लगी। ई.डी. छापे मारने लगी। इस समय देश में एक ही बात कही जा रही है कि बीजेपी एक व्यक्ति पर सारा दांव लगाने में लगी है। जबकि विपक्ष मानता है कि कोई सियासी जेबकतरा उनकी जेब नहीं काट सकता। वह केवल देशवासियों को बता रहा है कि किस तरह तुम्हारी जेबें सरकार काट रही है। बहरहाल शालीनता लांघती सियासत कब लोकतंत्र की गरिमा को बनाए रखने की दिशा में कदम बढ़ाएगी,देश भी नहीं जानता।






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