November 30, 2024

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महाराष्ट्र में सरकार गठन पर फंसा पेंच

एकनाथ शिंदे अपने गृहनगर सतारा के लिए रवाना




नागपुर। एड अब्दुल अमानी कुरैशी | महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पर बढ़ते सस्पेंस के बीच, राज्य में सत्ता-साझाकरण समझौते को आगे बढ़ाने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन की एक प्रमुख बैठक शुक्रवार को रद्द कर दी गई। निवर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपने गृहनगर सतारा के लिए रवाना हो गए हैं। अब मुख्य बैठक रविवार को होने की उम्मीद है। मतलब स्पष्ट है कि मतभेद भले नहीं होने का दावा किया जा रहा हो, लेकिन मनभेद जरूर कायम है। वैसे शिंदे ने कहा है कि राज्य में सरकार गठन के मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा प्रमुख जे. पी. नड्डा के साथ उनकी अच्छी और सकारात्मक बातचीत हुई। महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री को लेकर फैसला 'एक या दो दिन' में राज्य की राजधानी में महायुति गठबंधन की एक अन्य बैठक में किया जाएगा।


अन्य चेहरे की भी वैकल्पिक तलाश

बताया जा रहा है कि महायुति की एक और बैठक मुंबई में होगी, जिसमें सीएम के नाम को लेकर फैसला किया जाएगा। भाजपा के दो ऑब्जर्वर विधायक दल की बैठक में शामिल होंगे और सीएम के नाम का ऐलान करेंगे। भाजपा मराठा नेताओं पर भी विचार कर रही है और ऐसे में फडणवीस की जगह अन्य किसी को मौका दिया जा सकता है।

जातीय गणित का पूरा ध्यान

दरअसल, सीएम चुनने में इस बार जातीय गणित का ध्यान रखा जा रहा है और ऐसे में फडणवीस इस रेस में पीछे होते दिख रहे हैं, क्योंकि 288 सीटों की विधानसभा में मराठा समुदाय के विधायक बड़ी संख्या में चुनकर आए है। देवेंद्र फडणवीस ब्राह्मण हैं और ऐसे में भाजपा मराठा नेता को सीएम पद के लिए आगे कर सकती है। आरएसएस ने दबाव बढ़ाया तो फडणवीस के सीएम बनने के पूरे आसार हैं। महाराष्ट्र में 28% मराठा, 12-12% दलित व मुस्लिम, 8% आदिवासी हैं। 38% ओबीसी हैं। राज्य की 100 सीटों पर ओबीसी का असर है।

मराठी अस्मिता का सवाल

आम धारणा बनी है कि गैर-महाराष्ट्री पार्टी भाजपा ने मराठी स्वाभिमान की प्रतीक राज्य की दो पार्टियों राकांपा और शिवसेना को तोड़ दिया, ताकि राजनीति में महाराष्ट्री की अपनी पहचान ही मिट जाए। महाराष्ट्र की राजनीति लंबे समय से शिवसेना और राकांपा की क्षेत्रीय विशेषताओं से परिभाषित होती रही है, जो जमीनी स्तर पर मजबूत संबंध बनाए रखते हैं और संघीय ढांचे के भीतर क्षेत्रीय भावनाओं को मूर्त रूप देते हैं। शिवसेना का असर मुंबई, पुणे, नासिक और कोंकण क्षेत्र के शहरी इलाकों में रहा है, तो राकांपा को मराठा समुदाय के बीच मजबूत समर्थन प्राप्त है और पश्चिमी महाराष्ट्र में उसका दबदबा है। गठन के बाद से ही शिवसेना और राकांपा की राजनीति क्षेत्रीय हितों की रक्षा के इर्द-गिर्द घूमती रही है। समीकरण बैठाने में यह सबसे बड़ा मुद्दा है।





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सोनम कौर भाटिया

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