नई दिल्ली । रमेश कुमार 'रिपु'। नीतीश के एक बयान ने बीजेपी की धड़कनें बढ़ा दी थी। महागठबंधन को 67 फीसदी वोट मिले थे पिछली बार। इस बार महागठबंधन की एकता के चलते बीजेपी को सौ सीट भी मिलने के लाले पड़ जाएंगे। जाहिर सी बात है कि जिस तरह नीतीश महागठबंधन के दम पर अपना दम दिखा रहे थे,उससे यूपी में बीजेपी को भी भारी नुकसान होने का अंदेशा हो गया था। एक बयान नीतीश का और एक बयान अमित शाह की वजह से राजनीति की तस्वीर ही बदल गयी । अमितशाह ने बिहार में अचानक यह कहकर सनसनी फैला दिए थे, कि नीतीश के लिए दरवाजे खुले हैं। रही सही कसर कपूरी ठाकुर को भारत रत्न मोदी देकर, नीतीश और लालू की राजनीति में दरार पैदा कर दिये।
नतीश एनडीए के हुए और महागठबंधन की दीवार में दरार ऐसी बढ़ी कि मोदी के खिलाफ जो एक हुए थे,वही अलग हो गए।
नीतीश एनडीए के रंग में रंग गए। महागठबंधन का साथ छोड़ते ही सभी क्षत्रप के पर निकल आए हैं। सभी अपने अपने राज्यो में कांग्रेस को ठेंगा दिखाने लगे हैं। सीट शेयरिंग होने से पहले सभी अपने अपने राज्योें में अकेला चुनाव लड़ने की घोषणा करने लगे। केजरी वाल ने पंजाब में आम आदमी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी की घोषणा की दूसरी ओर ममता बनर्जी ने भी एकला चलो का शोर कर दिया। अखिलेश यादव ने बकायदा अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दिये हैं। जाहिर सी बात है कि महाराष्ट्र, दिल्ली,उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड,गुजरात सहित अन्य राज्यों में क्षत्रप कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेंगे। महागठबंधन की दीवार ढह गयी है। इसी के साथ धीरे धीरे कांग्रेस की दीवार में छेद होने का सियासी उपक्रम शुरू हो गया है।
फूल छाप कांग्रेसी हैं नाथ..
मध्यप्रदेश में जिनकी वजह से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का साथ छोड़ा, वही अब बीजेपी में जा रहे हैं। कमलनाथ यदि कद्दावर नेता होते, तो 2023 में कांग्रेस की सरकार बना लेते। शिवराज सरकार के खिलाफ एंटीइन्कमबैसी के बाद भी कांग्रेस को एक सैकड़ा भी सीट नहीं मिली। कमलनाथ हमेशा दस जनपथ की चाटुकारिता की राजनीति किये। दस साल तक वो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे। लेकिन उन्होने कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा तक मजबूत नहीं कर पाए। भोपाल और छिंदवाड़ा से कभी बाहर निकले नहीं। वो प्रदेश की राजनीति कम किये मुख्यमंत्री रहते हुए, बल्कि उससे अधिक दिग्विजय सिंह सक्रिय रहे। वो केवल विधायक बनकर नहीं रहना चाहते हैं । सोनिया गांधी से दस जनपथ में कमलनाथ मिले। मध्यप्रदेश से खुद को राज्य सभा में भेजने की बात कही। उन्होंने कुछ नहीं कहा। उन्हें यह बात समझ में आ गयी कि अब दस जनपथ में उनकी अहमियत पहले जैसे नहीं रह गयी। छिदवाड़ा से उनका बेटा नुकुलनाथ सांसद है। बड़ी मुश्किल से जीते थे। जीत का अंतर मात्र 35 हजार था। शिवराज सिंह चौहान स्वयं अपनी इच्छा जता चुके हैं छिदवाड़ा से चुनाव लड़ने की। यदि वो वहां से चुनाव लड़ते हैं तो उनकी लोकप्रियता और प्रदेश में बीजेपी की सरकार के चलते नुकुलनाथ का चुनाव जीत पाना बेहद मुश्किल हो जाएगा। अपने बेटे को राजनीति में बनाए रखने के लिए कमलनाथ भाजपा में जा रहे हैं। इनके जाने की अटकलें बहुत पहले से की जा रही थी।
नाथ ने बनाई दूरी..
विधान सभा चुनाव हार के बाद कमलनाथ ने दस जनपथ से दूरी बना ली। इससे दस जनपथ उनसे नाराज हो गया। वहीं कमलनाथ के बिना इस्तीफा दिये ही प्रदेश में नया प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को बना दिया गया। कमलनाथ को सदन और संगठन में कोई पद पार्टी ने नहीं दिया। कांग्रेस की हार के बाद पार्टी में उनके खिलाफ खुला विरोध शुरू हो गया, लेकिन पार्टी ने ऐसे लोगों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया। राज्य सभा के लिए पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया,इस वजह से कमलनाथ ने हाथ का साथ नहीं देने का मन बनाया।
नाथ ने बीजेपी का साथ दिया..
मध्यप्रदेश कांग्रेस के एक गुट का आरोप है कि विधान सभा चुनाव में कमनाथ ने जानबुझकर कांग्रेस को हरवाए हैं। वो बीजेपी के लिए काम कर रहे थे। यह तो तय है कि कमलनाथ बीजेपी में अपने बेटे सहित समर्थकों के साथ बीजेपी में चले जाएंगे। इसका वो संकेत पहले ही दे दिये थे। उनके समर्थक छिदवाड़ा में बीजेपी में शामिल होने लगे। कांग्रेस का साथ छोड़ने की शुरूआत जिस तरह हो रही है,उससे एक बात साफ है, कि आने वाले समय में कांग्रेस में हाथ हिलाने वाला भी कोई न बचेगा। मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के दम पर कांग्रेस एक सीट पा जाए यही बहुत है।
क्यों चाहिए बीजेपी को नाथ..
मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार है। ऐसे में बीजेपी को कमलनाथ की जरूरत क्यों पड़ गयी। दरअसल बीजेपी चाहती है प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीट पर कब्जा करना। इसलिए वो कमलनाथ को बीजेपी में शामिल कर रही है। छिंदवाड़ा का सियासी इतिहास रहा, कि एक उपचुनाव छोड़ कभी बीजेपी का सांसद नहीं बना। सन् 2014 और 2019 में मोदी लहर में भी बीजेपी छिंदवाड़ा लोकसभा सीट नहीं जीत सकी थी। कमलनाथ के बीजेपी में चले जाने से कांग्रेस का वजूद बिखर जाएगा। वैसे भी कांग्रेस के करीब दो दर्जन से अधिक विधायक बीजेपी में जाने को तैयार बैठे हैं। यानी कमलनाथ के बीजेपी में जाते ही कांग्रेस एक बार फिर टूटेगी।
प्रियंका के सलाहाकार भी..
प्रियंका गांधी के राजनीतिक सलाहकार आचार्य कृष्णम भी कांग्रेस को गुड बाॅय कह चुके हैं। उन्होंने इंडिया गठबंधन पर निशाना साधाते हुए कहा, जो सनातन के खिलाफ है, वो भारत के खिलाफ है। सनातन के खिलाफ बोलने वाले रावण के वशंज हैं। इनका सर्वनाश तय है। सोनिया गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को राम लला मंदिर के उद्घाटन का निमंत्रण मिला था। लेकिन दोनो नहीं गए। इससे आचार्य कृष्णम नाराज हो गए थे।
हाथ छोड़ने वाले..
कांग्रेस का साथ छोड़ने वाले नेताओं की बेहद लंबी सूची है। अर्जुन सिंह और एनडी तिवारी ने भले नरसिंम्हाराव से आपसी सियासी विवाद के चलते कांग्रेस छोड़कर तिवारी कांग्रेस पार्टी बनाई थी। बाद में कांग्रेस में चले गए थे। जबकि एनडी तिवारी यूपी के सीएम थे। इसी तरह अजीत जोगी छत्तीसगढ़, विजय बहुगुणा उत्तराखंड, ओड़िसा के गिरिधर गोमांग,गोवा से दिंगबर कामत,गोवा से ही रवि नाइक,और लुइजिन्हों फलेरियो,एस.एम कृष्णा कर्नाटक,किरण रेड्डी आंन्ध्र प्रदेश और पैमा खंडू अरूणाचल प्रदेश के सीएम रहे, ने भी कांग्रेस छोड़ दी थी। लेकिन कांग्रेस के हाथ की लकीर में नेताओं को छोड़ने की जो रेखा बनी, वो आज तक बनी हुई है। सन् 2019 में टाॅम बडक्कन,राधा कृष्ण पाटिल,सन् 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया,2021 में जितिन प्रसाद ने कांग्रेस छोड़ी। 2021 में सुष्मिता देव,सन् 2022 में अमरिंदर सिंह, आरपीएन सिंह,सुनील जाखड़ा,अश्विनी कुमार,कपिल सिब्बल,हार्दिक पटेल,गुलाम नबी आजाद और सन् 2023 में अनिल एंटनी,मिलिंद देवड़ा,जदीश शेट्टार,इसी साल फरवरी में अशोक चव्हाण ने भी कांग्रेस छोड़ दी। उन पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोपों के साथ ही ईडी की कार्रवाई भी हुई। अब बीजेपी में चले गए। बीजेपी ने उन्हें महाराष्ट्र से राज्य सभा भेज रही है।
देश में कांग्रेस ही एक मात्र विपक्ष के रूप में सबसे बड़ी पार्टी है। इस बार लगता है, संसद में उसके पचास सांसद भी नहीं होंगे। जिस तरह कांग्रेस छोड़कर बड़े नेता बीजेपी में जा रहे हैं,उससे बीजेपी को ही फायदा है। बीजेपी का अब कि बार चार सौ के पार का नारा चुनाव से पहले सच होता दिख रहा है।