नई दिल्ली । रमेश कुमार 'रिपु' । राजनीति का राज धर्म हर दौर में बदलता रहा है। बदलना भी चाहिए। बिहार की राजनीति में भी यही होने जा रहा है। बिहार की न केवल सत्ता बल्कि, राजनीति भी हिचकोले खा रही है। गुजराती लाबी की भी धड़कनें बढ़ी हुई है। नीतीश को एनडीए में लिया जाए कि नहीं। उन्हें लेने पर क्या सियासी फायदा और नुकसान हो सकता है, उस पर मंथन चल रहा है। नीतीश का मास्टर प्लान क्या है, न मोदी को पता है और न ही लालू को। हर दल की। पूरे देश की। और खासकर लालू और दिल्ली की नजर नीतीश के इस्तीफे को लेकर है। नीतीश इस्तीफा देते हैं तो बिहार में क्या खेला हो जाएगा? लालू के पास कौन सा गेम चेंज प्लान है। इस पर केवल गुजरात लाॅबी ही नहीं,इंडिया गठबंधन की भी नजर है। नीतीश किस करवट बैंठेगे यह अभी भी तय नहीं है। उन्हें एनडीए में लेने को लेकर दिल्ली में सियासी नफा नुकसान को लेकर मंथन चल रहा है। नीतीश की सियासत करवट बदलती है तो उनकी पार्टी के टुकड़े होने की चर्चा गर्म है। ऐसे में बिहार की राजनीति में नयी सत्ता का उदय हो सकता है। ऐसा हो न बीजेपी चाहती है और न ही नीतीश।
नीतीश ने कईयों पर हमला बोला..
बीजेपी के चाणक्य ने बिहार के सुशासन बाबू के दिल में यह कहकर हचलचल मचा दिये हैँ कि उनकी ओर से कोई प्रस्ताव आया तो विचार किया जाएगा। नीतीश के लिए दरवाजे बंद नहीं हैं। ऐसा लगता है नीतीश इसी का इतंजार कर रहे थे, कि कब बीजेपी की ओर से कहा जाए कि उनके लिए एनडीए के दरवाजे बंद नहीं है। नीतीश ने परिवार वाद की राजनीति का बयान देकर केवल लालू प्रसाद यादव ही नहीं बल्कि, गांधी परिवार, ठाकरे परिवार,यादव परिवार को भी निशाने पर लिया है। ऐसा कहकर उन्होंने इंडिया गठबंधन के कयी लोगों पर हमला बोला है। कई लोगों को नाराज किया है। उनकी नाराजगी की वजह भी साफ है। उन्हें इंडिया गठबंधन का न अध्यक्ष बनाया गया और न ही संयोजक। उन्हें सर्वमान्य नेता भी नहीं नहीं चुना गया। इंडिया गठबंधन अब एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है।
नीतीश विनिंग फैक्टर..
अभी यही माना जा रहा है कि नीतीश एनडीए में चले गए तो इंडिया गठबंधन की सारी एका वाली गांठ खुल जाएगी। वहीं गुजरात लाॅबी फूंक- फूंक कर कदम रखना चाह रही है। मगर उसके मन में यह भी है,कि केवल नारे गढ़ देने से सीट नहीं मिल जाएंगे कि अबकि बार चार सौ के पार। इसलिए कि नीतीश ने इंडिया गठबंधन के लिए जो काम किए हैं,वो बीजेपी के रास्ते के लिए रोड़ा है। बिहार में 40 सीट है। बगैर नीतीश के सहयोग के बीजेपी दहाई अंक तक भी नहीं पहुंच सकेगी। नीतीश विनिंग फैक्टर हैं। नीतीश की वजह से अन्य पीछड़ा वोट यूपीए को 9 फीसदी और एनडीए को 76 फीसदी मिले थे। कोयरी-कुर्मी यूपीए के साथ 7 फीसदी गया था और एनडीए के साथ 70 फीसदी। सवर्ण और मुस्लिम वोटर भी एनडीए को यूपीए से अधिक मिले थे। जाहिर सी बात है कि बिहार की राजनीति में नीतीश की महत्ता को दरकिनार नहीं किया जा सकता।लेकिन नीतीश के इस्तीफा देने के बाद बिहार में कौन सा खेला हो जाएगा,कोई नहीं जानता। किसके पास ट्रंप कार्ड है,यह भी पता नहीं। लेकिन जिस तरह जेडीयू के विधायकों में बीजेपी को लेकर गुस्सा है,उससे यही लगता है कि नीतीश ने यदि एनडीए का साथ दिया तो जेडीयू के टुकड़े हो जाएंगे। जैसा कि विधायक गोपाल मंडल ने दो टूक कह दिया है,कि नीतीश बाबू यदि जेडीयू के टुकड़े नहीं करना चाहेंगे तो वो एनडीए का हिस्सा नहीं बनेंगे।
कई सियासी सवाल..
बिहार की राजनीति में बीजेपी की जो स्थिति 2004,2009 में थी वो 2024 में भी है क्या है? यह सवाल दिल्ली के गलियारों में भी टहल कदमी कर रहा है। जेडीयू यदि आरजेडी के साथ है तो क्या लोकसभा चुनाव में आरजेडी को फायदा होगा। क्या नीतीश से ज्यादा तेजस्वी बिहार में लोकप्रिय हो गए हैं। बीजेपी इस समय जेडीयू को लेकर कई तरह का मंथन कर रही है। इसलिए कि राहुल की न्याय यात्रा दो -तीन दिनों बाद बिहार पहुंचेगी। वैसे ममता बनर्जी ने बंगाल में राहुल की न्याय यात्रा की अनुमति नहीं दी है। उसकी वजह साफ है। बंगाल के मुस्लिम वोटर विकल्प तलाश रहे हैं। राहुल के पहुंचने पर यदि आठ लोकसभा सीट के मुस्लिम वोटर पलट गए तो न केवल बीजेपी को बल्कि,ममता को भी नुकसान हो सकता है। ममता बनर्जी कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग करने को तैयार नहीं है। अकेले बंगाल में चुनाव लड़ने की बात कर दी है। जबकि इसके पहले वो केवल दो सीट कांग्रेस को देना चाहती थीं। अब वो भी नहीं। वहीं गुजरात लाॅबी चाहती है कि यदि जेडीयू टूटता है तो कांग्रेस को तोड़ लिया जाएगा। आपरेशन लोटस का खेल बिहार में बीजेपी खेलना चाहती है। और वो मौके की तलाश कर रही है। लेकिन क्या ऐसा होना आसान होगा। मध्यप्रदेश की तरह बिहार कांग्रेस में भी ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी ढूंढने में लगी है।
नीतीश दुविधा में..
नीतीश दुविधा में हैं। इस्तीफा देने पर यदि जेडीयू टूट गया और बीजेपी ने उन्हें सीएम नहीं बनाया, बिहार में लालू कोई नया सियासी गेम खेल गये तो क्या होगा। ममता बनर्जी कह रही हैं, कि नीतीश से कहीं ज्यादा तेजस्वी यादव कद्दावर वाले नेता हैं। देखा जाए तो इसे पूरे सियासी घटनाक्रम में तेजस्वी यादव ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया,जिससे यह लगे कि बिहार की सरकार जाने वाली है। संघ और बीजेपी को पता चला है, कि बिहार में बीजेपी को जबरदस्त घाटा है। बंगाल और महाराष्ट्र में भी। महाराष्ट्र का वोटर एकनाथ शिंद के साथ नहीं है। शिवसेना को तोड़ने के बाद भी उद्धव ठाकरे के पक्ष में जनमत है।
बिहार की राजनीति में उठा पटक अपनी जगह है। लेकिन उसने अपने साथ कई सवाल भी देश की सियासी टेबल पर छोड़ दिया है। आने वाले चुनाव में इंडिया गठबंधन किस करवट बैठेगा। मास्टर प्लान लालू का कहीं काम न कर जाए। उन्होंने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी का ऑफर किया है। यदि ऐसा होता भी है तो लालू बहुमत से दो सीट दूर हैं। माना जा रहा है कि जेडीयू के कई विधायक राजद के संपर्क में हैं। वहीं जेडीयू का दावा है, कि राजद के कई विधायक उनके संपर्क में है। यानी कौन सी पार्टी टूटेगी यह सब नीतीश के इस्तीफा के बाद, सियासी ड्रामा होगा।